मैं ने उसी से हाथ मिलाया था और बस वो शख़्स जो अज़ल से पराया था और बस लम्बा सफ़र था आबला-पाई थी धूप थी मैं था तुम्हारी याद का साया था और बस हद्द-ए-निगाह चार-सू किरनों का रक़्स था पहलू में चाँद झील के आया था और बस इक भेड़िया था दोस्ती की खाल में छुपा इस ने मिरे वजूद को खाया था और बस फिर यूँ हुआ हवाएँ थीं रक़्साँ तमाम-रात इक ताक़चे में दीप जलाया था और बस दोनों तरफ़ की रंजिशें अश्कों में बह गईं इक शख़्स मेरे ख़्वाब में आया था और बस इस कारज़ार-ए-ज़ीस्त में हम ने तमाम-उम्र 'अरशद' किसी का इश्क़ कमाया था और बस