मरते हुए वजूद की हसरत तमाम-शुद साँसों से लिपटी आख़िरी चाहत तमाम-शुद दस्त-ए-क़ज़ा बढ़ा है मिरी सम्त अलविदा'अ ऐ एतिकाफ़-ए-इश्क़ इबादत तमाम-शुद साक़ी तुम्हारे मध-भरे होंटों का शुक्रिया बादा-कशी की सारी हलावत तमाम-शुद टूटी है आज साँस की डोरी तो यूँ हुआ अन-देखी मंज़िलों की मसाफ़त तमाम-शुद बुझते हुए चराग़ की सूरत हवा हूँ मैं इक ख़ूब-रू वजूद की ताक़त तमाम-शुद ऐ बारगाह-ए-हुस्न कोई फ़ैसला तो कर इस ना-मुराद-ए-इश्क़ की हुज्जत तमाम-शुद 'अरशद' मुझे तो ग़ैब से आती है अब सदा इब्न-ए-तुराब अब तिरी मोहलत तमाम-शुद