मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था और जब देखा तो आँखों पर यक़ीं आता न था बाम-ओ-दर से सख़्त बारिश में भी उट्ठेगा धुआँ यूँ भी होता है मोहब्बत में कभी सोचा न था आँधियों को रौज़न-ए-ज़िंदाँ से हम देखा किए दूर तक फैला हुआ सहरा था नक़्श-ए-पा न था लोग लाए हैं कहाँ से शब को मरमर के चराग़ उन चटानों में तो दिन को रास्ता पैदा न था शहर की हंगामा-आराई में खो कर रह गया मैं कि अपने घर में भी मुझ को सुकूँ मिलता न था बर्फ़ अपने-आप घुल जाती है सूरज हो न हो शाम से पहले ये जाना था मगर समझा न था उन दिनों भी शहर में सैलाब आते थे बहुत वादियों में जब कहीं बादल अभी बरसा न था रात की तन्हाइयों में जिस से चौंक उठ्ठे थे हम अपनी ही आवाज़ थी शो'ला कोई चमका न था वो भी सच कहते हैं 'अख़्तर' लोग बेगाने हुए हम भी सच्चे हैं कि दुनिया का चलन ऐसा न था