मैं पहरों घर में पड़ा दिल से बात करता हूँ जब उस के शक्ल-ओ-शमाइल से बात करता हूँ ब-वक़्त-ए-ज़ब्ह भी हिलते रहें हैं लब मेरे ज़ि-बस-कि ख़ंजर-ए-क़ातिल से बात करता हूँ मिरी ज़बाँ को मिरा हम-नवा ही समझे है मैं नीम ज़ब्ह हूँ बिस्मिल से बात करता हूँ न नाक़ा और न महमिल रहा मैं सौदाई हनूज़ नाक़ा ओ महमिल से बात करता हूँ है इन दिनों मिरी आवाज़ में यहाँ तक ज़ोफ़ कि अपने साथ भी मुश्किल से बात करता हूँ समझ न मौज मिरे मुँह में हैं हज़ारों ज़बाँ मैं बहर हूँ लब-ए-साहिल से बात करता हूँ मज़ा मिले है मुझे उस की हम-कलामी का मैं उस के दर के जो साइल से बात करता हूँ ब-वक़्त-ए-आईना दीदन बुलाऊँ मैं तो कहे मैं अपने आशिक़-ए-माइल से बात करता हूँ जो 'मुसहफ़ी' की सिफ़ारिश करें तो बोले वो शोख़ मैं ऐसे नंग-ए-क़बाइल से बात करता हूँ