मैं रो रहा हूँ जो दिल को तो बेकसी के लिए वगर न मौत तो दुनिया में है सभी के लिए शब-ए-फ़िराक़ की रोज़ाना आफ़तें तौबा ये इम्तिहान तो होता कभी कभी के लिए बहुत सी उम्र मिटा कर जिसे बनाया था मकाँ वो जल गया थोड़ी सी रौशनी के लिए वसीअ' बज़्म-ए-जहाँ है तो हो मुझे क्या काम जगह मिली न मिरी हसरत-दिली के लिए ये और दामन-ए-क़ातिल है छूट जाएगा लहू में जोश तो बरसों से था इसी के लिए न आँख बंद करूँ मैं तो क्या करूँ यारब वो आ रहे हैं तमाशा-ए-जाँ-कनी के लिए बुला के मुझ को निकाला है अपनी महफ़िल से वो नेकियाँ नहीं अच्छी हैं जो हो बदी के लिए क़फ़स में आज तमाशा-ए-ग़म है क़ाबिल-ए-दीद तड़प रहा हूँ मैं सय्याद की ख़ुशी के लिए तमाम हो गए हम इक निगाह-ए-क़ातिल से रगें गले की तड़पती रहीं छुरी के लिए फ़रोग़-ए-हुस्न बढ़ा दिल की बे-नवाई से फ़क़ीर हो गया शान-ए-तवंगरी के लिए क़फ़स में चुप न हों तो क्या करूँ कि ये क़ैदी न दोस्ती के लिए है न दुश्मनी के लिए तमाम बज़्म में छाया हुआ है सन्नाटा छुड़ा था क़िस्सा-ए-दिल उन की दिल-लगी के लिए शिकायत-ए-चमन-ए-दहर क्या करूँ 'साक़िब' हवा ख़िलाफ़ है लेकिन किसी किसी के लिए