तक़वे के लिए जन्नत-ओ-कौसर हुए मख़्सूस रिंदी के लिए शीशा-ओ-साग़र हुए मख़्सूस पाबंदी-ए-अहकाम-ए-शरीअत है वहाँ फ़र्ज़ रिंदों को रुख़-ए-साक़ी-ओ-साग़र हुए मख़्सूस क़ाएम है वहाँ दीन भी दुनिया भी ब-उम्मीद हम को करम-ए-रहमत-ए-दावर हुए मख़्सूस शेख़ी है वहाँ जुब्बा-ओ-दस्तार पे मौक़ूफ़ रिंदी को यहाँ तर्क-ए-तन-ओ-सर हुए मख़्सूस है कश्फ़-ओ-करामात वहाँ माया-ए-पिंदार सौदा और ज़ियाँ हम को बराबर हुए मख़्सूस हैं ख़िरक़ा-ओ-अम्मामा वहाँ पीर-ए-तरीक़त याँ कुफ्र-ओ-सनम हादी-ओ-रहबर हुए मख़्सूस मौक़ूफ़ जो ईमाँ पे रहे मस्जिद-ओ-मिंबर 'साहिर' को सनम-ख़ाना-ओ-साग़र हुए मख़्सूस