मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे मिरे ख़याल की यारब उसे हवा न लगे अजीब तर्ज़ से अब के निभाया उल्फ़त को वफ़ा जो की है तो इस तरह कि वफ़ा न लगे दरून-ए-ज़ात बसा है जहान यादों का वो दूर रह के भी मुझ को कभी जुदा न लगे कभी तो कहता था हर लम्हा तेरे साथ हूँ मैं अब ऐसे बछड़ा के उस का कहीं पता न लगे तबीब तुम को भुलाने का कर रहा है इलाज मरज़ हुआ है पुराना कोई दवा न लगे तुम्हारे वास्ते जब जब बढ़ाया दस्त-ए-तलब अजीब बात है इस दम दुआ दुआ न लगे उठे नज़र से न उस की फुसून-ए-पर्दा-ए-हुस्न ख़ता भी तुझ से अगर हो उसे ख़ता न लगे ये तेरा तर्ज़-ए-बयाँ मुश्रिकों सा है 'असरा' वो दिन न आए के तुझ को ख़ुदा ख़ुदा न लगे