हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे हमें तो लोग तुम्हारा ही रूप पहने लगे बस एक लौ सी नज़र आई थी फिर उस के बा'द बुझे चराग़ सियह पानियों पे बहने लगे उसे भी हादिसा कहिए कि ख़ुश्क दरिया पर पड़ी जो धूप तो पत्थर पिघल के बहने लगे रुतों ने करवटें बदलीं तो हम ने भी इक बार फिर अपने घर को सजाया और उस में रहने लगे न जाने क्यूँ मिरे अहबाब मेरे बारे में जो बात आम थी सरगोशियों में कहने लगे जो क़तरा क़तरा पिया हम ने ज़िंदगी का ज़हर तो 'रिंद' बन के हर इक दिल का दर्द बहने लगे