मैं समुंदर न बना जू-ए-रवाँ होते हुए बन के जुगनू न उड़ा शो'ला-फ़िशाँ होते हुए रफ़्ता रफ़्ता भी हुए काम जिन्हें होना था क्यूँ अंधेरे न छुटे सुब्ह-ए-अयाँ होते हुए कल अजब बात हुई औज पे थी तन्हाई पास मेरे तिरे होने का गुमाँ होते हुए तू न बन जाए कहीं पहला निशाना मेरा तेरे क़ाबू में मिरे तीर-ओ-कमाँ होते हुए बाग़ वीरान बहारों में रहे और 'शादाब' फूल जंगल में खिले फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ होते हुए