कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए दिगर-गूँ हैं मिरे हालात जब से तुम नहीं आए लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए न की जाती है औरों से मुलाक़ात एक लम्हे को न हो पाती है ख़ुद से बात जब से तुम नहीं आए पता चलता नहीं था साअ'तों का जब तुम आते थे गुज़रते हैं गराँ लम्हात जब से तुम नहीं आए न घर वाले न हम-साए न अहबाब-ओ-अइज़्ज़ा हैं ये दिल है या ख़ुदा की ज़ात जब से तुम नहीं आए