मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर कि तेरे शहर में रहता हूँ और घर के बग़ैर मुझे वो शिद्दत-ए-एहसास दे कि देख सुकूँ तुझे क़रीब से और मिन्नत-ए-नज़र के बग़ैर ये शहर ज़ेहन से ख़ाली नुमू से आरी है बलाएँ फिरती हैं याँ दस्त ओ पा ओ सर के बग़ैर निकल गए हैं जो बादल बरसने वाले थे ये शहर आब को तरसेगा चश्म-ए-तर के बग़ैर कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का कि सारे शहर के अख़बार हैं ख़बर के बग़ैर मैं पाँव तोड़ के बैठा रहा कहीं न गया 'सलीम' मंज़िलें तय हो गईं सफ़र के बग़ैर