तू भी अब छोड़ दे साथ ऐ ग़म-ए-दुनिया मेरा मेरी बस्ती में नहीं कोई शनासा मेरा शब-ए-ग़म पार लगा दे ये सफ़ीना मेरा सुब्ह होगी तो उतर जाएगा दरिया मेरा मुझ को मालूम नहीं नाम है अब क्या मेरा ढूँडने वाले मुझे छोड़ दे पीछा मेरा मैं ने देखी नहीं बरसों से ख़ुद अपनी सूरत मेरे आईने से रूठा है सरापा मेरा तू भी ख़्वाबों में मिली मैं भी धुँदलकों में तुझे ज़िंदगी देख कभी ग़ौर से चेहरा मेरा घर से निकला हूँ तो अब दूर कहीं जाने दे रोक ऐ गर्दिश-ए-अय्याम न रस्ता मेरा दो क़दम दौड़ के आवाज़-ए-जरस बैठ गई चल पड़ा मैं तो कहीं पाँव न ठहरा मेरा मेरे दामन में रही ख़ाक-ए-ग़रीब-उल-वतनी रह गया देख के मुँह दामन-ए-सहरा मेरा