मैं शाद हूँ तो ज़माने में शादमानी है शराब लाओ कि आलम तमाम फ़ानी है तमाम आलम-ए-हस्ती पे हुक्मरानी है मिरा जहान है जब तक मिरी जवानी है रगों में रूह है और ख़ून में रवानी है निगाह बादा-कश ओ चेहरा अर्ग़वानी है तग़य्युरात के आलम में ज़िंदगानी है शबाब फ़ानी नज़र फ़ानी हुस्न फ़ानी है कहीं कहीं ये मोहब्बत भी ग़ैर-फ़ानी है जहाँ ख़याल हक़ीक़त की तर्जुमानी है तिरे ख़याल से है मस्ती-ए-नज़र मेरी तिरी निगाह से मैं ने शराब छानी है तिरा जमाल फ़सानों में रंग भरता है तिरे शबाब से दिलकश मिरी कहानी है मिरी हयात में जब तू नहीं तो कुछ भी नहीं तिरे बग़ैर भी क्या ख़ाक ज़िंदगानी है दिल-ए-फ़सुर्दा में होती है ज़िंदगी पैदा 'नुशूर' जुरा-ए-सहबा भी ज़िंदगानी है