बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो इश्क़-पेचे की तरह हुस्न-ए-गिरफ़्तारी है लुत्फ़ क्या सर्व की मानिंद गर आज़ाद रहो हम को दीवानगी शहरों ही में ख़ुश आती है दश्त में क़ैस रहो कोह में फ़रहाद रहो वो गराँ ख़्वाब जो है नाज़ का अपने सो है दाद बे-दाद रहो शब को कि फ़रियाद रहो 'मीर' हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुम से प्यारे इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहो