मैं शम्अ-ए-बज़्म-ए-आलम-ए-इम्काँ किया गया इंसानियत को देख के इंसाँ किया गया अब मेरे इम्तिहान का सामाँ किया गया यानी सुपुर्द-ए-आलम-ए-इम्काँ किया गया महफ़ूज़ मैं ने रक्खे जुनूँ के तबर्रुकात दामन अगर फटा तो गरेबाँ किया गया तय कर के इर्तिक़ा के मनाज़िल को शौक़ से पहुँचा जब अपने हद पे तो इंसाँ किया गया सच पूछिए तो क्या था फ़क़त एक ख़ार-ज़ार मेरे लिए जहाँ को गुलिस्ताँ किया गया दरिया तो और भी थे ज़माने में बे-शुमार आब-ए-हयात चश्मा-ए-हैवाँ किया गया कुछ और रौशनी का बढ़ा हुस्न या नहीं फ़ानूस में जो शो'ले को पिन्हाँ किया गया