मैं तही-दस्त मोहब्बत में भला क्या देता तेरे हिस्से से मगर तुझ को ज़ियादा देता ज़िंदगी तू ने बड़ी देर लगा दी वर्ना मैं तुझे मिलता तिरे गाल पे बोसा देता बाज़ औक़ात अगर शे'र न होता मुझ से उस की आँखों का इशारा मुझे मिस्रा देता मैं ज़माने को बनाता तो ज़माने भर को तेरी आँखें तिरा चेहरा तिरा लहजा देता तू ठहरता तो कोई हल भी निकल सकता था साथ चलता न तिरे मशवरा अच्छा देता तुम को लालच थी ख़ज़ाने की सो नाकाम हुए मुझ से कहते तो मैं उस ग़ार का नक़्शा देता इतना ख़ुश था वो बिछड़ते हुए मुझ से वर्ना पाँव पड़ता मैं उसे रोकता समझा देता पीठ पीछे से अगर वार न करता 'साहिर' अपने दुश्मन के जनाज़े को मैं कंधा देता