मैं तेरे पास हूँ मुझ से ये कह रहा कोई है तमाम शब मिरी आँखों में जागता कोई है दिया उमीद का बुझता है जलती आँखों में किसी के लब पे मिरे वास्ते दुआ कोई है पुरानी बातों की यादें भिकारियों की तरह सवाल करती हैं ऐवान-ए-दिल पे क्या कोई है गुमाँ गुज़रता है होते हुए न होने का तिरी निगाह में जादू मगर नया कोई है ये ख़्वाब का है सफ़र मैं हूँ ख़्वाब-रू की तरह न इब्तिदा ही थी कुछ और न इंतिहा कोई है न वो फ़ज़ा न वो चश्मे न वादियाँ न वो लोग मगर ये वहम मिरी राह देखता कोई है शिकस्ता-दिल तू उसे छोड़ कर न जा 'ग़ाफ़िल' कि तेरे साज़ में मुज़्मर अभी सदा कोई है