मैं थक चुका हूँ ज़माना के चोंचलों से अब सो चुन रहा हूँ कुछ इक दोस्त दुश्मनों से अब चले गए हैं जो वापस नहीं मिला करते मिलूँगा ख़ैर तुम्हें मैं भी मुश्किलों से अब न जाने काट रहा हूँ मैं किस लिए रातें मिलेगा क्या ही मुझे जाने रतजगों से अब मिटा रहा हूँ अब अपना मैं अस्ल मा'नी ख़ुद तलाश करना मुझे अपने ज़ावियों से अब तुम्हारे दिल में भी मेरी जगह नहीं कोई मुझे भी सीखना है जीना बे-घरों से अब