मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ कोई तस्वीर नहीं जो तिरे अल्बम में रहूँ घर जो आबाद किया है तो ये सोचा मैं ने तुझ को जन्नत में रखूँ आप जहन्नम में रहूँ तू अगर साथ न जाए तो बहुत दूर कहीं दिन को सूरज के तले रात को शबनम में रहूँ जी में आता है किसी रोज़ अकेला पा कर मैं तुझे क़त्ल करूँ फिर तिरे मातम में रहूँ