मैं तो समझा था कि बस दस्त-ए-दुआ' सामने है ग़ौर से देखा तो देखा कि ख़ुदा सामने है एक दिन बस यूँही नज़रों से गिरा दी दुनिया एक दिन बस यूँही सोचा कि ये क्या सामने है अर्श के ज़ख़्म को भरते नहीं देखा अब तक मैं तो जब से हूँ ज़मीं पर ये ख़ला सामने है ख़ाक और ख़ून मिरा इस लिए रौशन है 'फ़रीद' मेरे पीछे है दुआ और दिया सामने है