सर-ब-सर प्यास में डूबा नज़र आता है मुझे जिस जगह भी कोई दरिया नज़र आता है मुझे जाम-ए-जम से भी सिवा है ये मिरा जाम-ए-सिफ़ाल क्या कहूँ इस में भी क्या क्या नज़र आता है मुझे क्या बनेगा मिरी आँखों का मिरे शीशागरो जो यहाँ जैसा है वैसा नज़र आता है मुझे कोई देखे तो दिखाऊँ उसे मंज़र का मआल कोई पूछे तो कहूँ क्या नज़र आता है मुझे कभी होता था जो 'ग़ालिब' के मुक़ाबिल शब-ओ-रोज़ रात-दिन अब वो तमाशा नज़र आता है मुझे