मैं तुझ पे कर नहीं सकता निसार और चराग़ हवा-ए-लम्स के झोंके न मार और चराग़ उठा के ताक़ से इक रोज़ फेंक देगा कोई मिरा वजूद तिरा इंतिज़ार और चराग़ सफ़र को याद रहेगा हमारा रख़्त-ए-सफ़र ये सुर्ख़ आबले गर्द-ओ-ग़ुबार और चराग़ तो जान लेना कि फिर इम्तिहान-ए-दोस्ती है अगर बुझाया गया एक बार और चराग़ तिरी जुदाई में इक दूसरे को तकते हैं तमाम रात रुख़-ए-अश्क-बार और चराग़ वजूद-ए-वक़्त पे तज़ईन-ए-शब के ज़ेवर हैं हमारी नींद हसीं ख़्वाब-ज़ार और चराग़ क़दीम वक़्तों से इक दूसरे के यार हैं ये कभी बिछड़ नहीं सकते मज़ार और चराग़ समाँ बनाते हैं शब का सफ़ेद चेहरों पर सियाह रंग के गहरे हिसार और चराग़ नवेद-ए-सुब्ह के इम्काँ में चल बसे दोनों शब-ए-शिकस्त का गिर्या-गुज़ार और चराग़ शब-ए-सुकूत में ‘शीरान’ महव-ए-रक़्स हैं सब धुआँ अंधेरा हवा-ए-ख़ुमार और चराग़