मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था वो अपने शहर में और मैं दयार-ए-ग़ैर में था हम अपने घर से बहुत दूर जा के लौट आए किसी की आँख का काँटा हमारे पैर में था मिला तो अश्क-ए-नदामत की तह में उस का सुराग़ किसी के दिल में न का'बे में था न दैर में था मैं जानता हूँ लिया जा रहा था मेरा नाम मैं दुश्मनों की तरह उस के ज़िक्र-ए-ख़ैर में था न जाने कैसे मसाइल थे अपने रिश्तों में सुकून सुल्ह के आलम में था न बैर में था ये और बात कि वो सब से पहले डूब गया तुम्हारा 'ताज' भी ख़ुद-आगही की तैर में था