मैं वहशत-ओ-जुनूँ में तमाशा नहीं बना सहरा मिरे वजूद का हिस्सा नहीं बना इस बार कूज़ा-गर की तवज्जोह थी और सम्त वर्ना हमारी ख़ाक से क्या क्या नहीं बना सोई हुई अना मिरे आड़े रही सदा कोशिश के बावजूद भी कासा नहीं बना ये भी तिरी शिकस्त नहीं है तो और क्या जैसा तू चाहता था मैं वैसा नहीं बना वर्ना हम ऐसे लोग कहाँ ठहरते यहाँ हम से फ़लक की सम्त का ज़ीना नहीं बना जितने कमाल-रंग थे सारे लिए गए फिर भी तिरे जमाल का नक़्शा नहीं बना रोका गया है वक़्त से पहले ही मेरा चाक मुझ को ये लग रहा है मैं पूरा नहीं बना