मैं वो दरिया हूँ चढ़ा हो जो उतरने के लिए जी रहा हूँ मैं यहाँ हम-ज़ाद मरने के लिए चाए-ख़ाने की नाशिस्तों पर जरीदों के वरक़ पेड़ से पत्ते झड़े उड़ने बिखरने के लिए एक मैं मद्द-ए-मुक़ाबिल वुसअत-ए-आफ़ाक़ में और सारी ताक़तें गुमराह करने के लिए हाफ़िज़ा वीरान होने के लिए आबाद था नाम कुछ होंटों पे आए थे बिसरने के लिए कार-ख़ानों को चले अम्बोह-दर-अम्बोह लोग जानवर निकले चरागाहों में चरने के लिए रौशनी में ख़ौफ़ का एहसास तक होता नहीं कर दिया है ऑफ़ टेबल-लैम्प डरने के लिए