मैं याद हूँ उन की ये उन्हें याद नहीं है मुझ सा भी जहाँ में कोई नाशाद नहीं है महबूब का हर ज़ुल्म है एहसान से बेहतर बेदाद जिसे कहते हैं बेदाद नहीं है डरता है कि चर्चा न तिरे ज़ुल्म का हो जाए लब पर तिरे मज़लूम के फ़रियाद नहीं है हर गोशा-ए-आलम नज़र-ए-ग़ौर से देखा इक दिल भी ग़म-ओ-रंज से आज़ाद नहीं है सब महव किया इक निगह-ए-लुत्फ़ से तू ने पिछ्ला तिरा कोई भी सितम याद नहीं है महरूम कोई क्यों हो तिरे दौर-ए-सितम में बद-बख़्त है जो कुश्ता-ए-बेदाद नहीं है वाक़िफ़ ही नहीं ज़ौक़-ए-असीरी से वो हरगिज़ जो कुश्ता-ए-बे-मेहरी-ए-सय्याद नहीं है था मैं जो सितम-दोस्त किया तू ने सितम तर्क कुछ कम ये सितम ऐ सितम-ईजाद नहीं है क्या बात है ऐ दिल तुझे चुप लग गई कैसी क्यों मश्ग़ला-ए-नाला-ओ-फ़रियाद नहीं है क्यों मुझ को असीरी में रिहाई की हवस हो क्या दिल में मिरे उल्फ़त-ए-सय्याद नहीं है कहने को तो यूँ शे'र सभी कहते हैं 'नश्तर' वाक़िफ़ नहीं जो फ़न से वो उस्ताद नहीं है