मैं यार का जल्वा हूँ या दीदा-ए-मूसा हूँ क़तरा हूँ न दरिया हूँ बस्ती हूँ न सहरा हूँ जीना मिरा मरना है मरने को तरसता हूँ अपनी ही उमीदों का बिगड़ा हुआ नक़्शा हूँ अरमानों का गहवारा हसरत का जनाज़ा हूँ इस आलम-ए-हस्ती में यूँ हूँ कि मैं गोया हूँ ज़िंदा हूँ मगर बेदम इक तुर्फ़ा-तमाशा हूँ