मैं ने हर दर्द को इक बीती कहानी समझा ख़ून जो आँख से टपका उसे पानी समझा मुझ को मग़रूर न समझे ऐ मिरी ख़ामोशी जा उसे गहरे समुंदर की रवानी समझा अपने हालात सुनाए थे उसे शे'रों में वो मिरे शे'र को अपनी ही कहानी समझा अपने क़ातिल पे मुझे रहम बहुत आता है जज़्बा-ए-इश्क़ को मासूम ने फ़ानी समझा वो है 'इमरान' समाजों के उसूलों का ग़ुलाम उस को नाहक़ न मोहब्बत के मआ'नी समझा