मेरी बस्ती में शिवाला भी नहीं है कोई ख़्वाह-मख़ाह पूजने वाला भी नहीं है कोई रोइए दिल को जिगर पीटिये कुछ भी कीजे हाल-ए-दिल पूछने वाला भी नहीं है कोई आप मंज़िल पे पहुँच आए हैं मुझ से पहले आप के पाँव में छाला भी नहीं है कोई यूँ मुसलसल मुझे ग़द्दार न कहते जाएँ आप के पास हवाला भी नहीं है कोई हम नमक-ख़्वार तो उर्दू के हैं 'इमरान' मगर घर में उर्दू का रिसाला भी नहीं है कोई