मैं ने जब उस से कहा देख ज़रा पानी में इक गुल-ए-ताज़ा कँवल खिलने लगा पानी में काग़ज़ी कश्ती पे इक ख़्वाब रखा एक दिया और इक इस्म पढ़ा छोड़ दिया पानी में एक दरवेश सर-ए-आब-ए-रवाँ गुज़रा था आज तक ढूँड रहा हूँ कफ़-ए-पा पानी में पहले मैं चलता रहा देर तलक चलता रहा फिर मिरा अश्क गिरा फिर मैं गिरा पानी में सर पटख़ते हुए दरिया को जो देखा तो लगा कोई आसेब है या कोई बला पानी में एक सैलाब उमड आया तिरी यादों का और मैं देर तलक बहता रहा पानी में ऐसे रौशन है मिरी आँख में इक ख़्वाब-ए-हसीं झिलमिलाता हो कोई जैसे दिया पानी में मैं तज़ादात के गारे से बना हूँ 'अहमद' ख़ाक में रक्खा गया आग हुआ पानी में