मज़ाक़-ए-इश्क़ से मैं शर्मसार हो न सका कि राज़दाँ भी मिरा राज़दार हो न सका नज़र से ज़र्रों को उल्टा गलों को चाक किया मगर मैं सर-ख़ुश-ए-दीदार-ए-यार हो न सका शबाब-ओ-इश्क़ की कुल उम्र एक लम्हा थी मुझे ये लम्हा मगर साज़गार हो न सका बजा-ए-ख़ुद मिरी हस्ती को कर दिया उर्यां वो पर्दा-दार मिरा पर्दा-दार हो न सका वो किस भरोसा पर उम्मीद-वार हो तेरा तिरी नज़र पे जिसे ए'तिबार हो न सका मुलाहिज़ा हो मोहब्बत का ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा जो आश्कार था वो आश्कार हो न सका मिरा मआल भी होता चमन सा इबरत-नाक जुनूँ का शुक्र कि वक़्फ़-ए-बहार हो न सका निगाह-ए-मस्त का मम्नून-ए-कैफ़ हूँ 'मख़मूर' कि पी तो ख़ूब मगर बादा-ख़्वार हो न सका