मजाल किस की है ऐ सितमगर सुनाए तुझ को जो चार बातें भला किया ए'तिबार तू ने हज़ार मुँह हैं हज़ार बातें जो कैफ़ियत देखनी है ज़ाहिद तो चल के तू देख मय-कदे में बहक बहक कर मज़े मज़े की सुनाएँगे बादा-ख़्वार बातें फ़साना-ए-दर्द-ओ-ग़म सुनाया तो बोले वो झूठ बोलता है सुनी हुई है बहुत कहानी न हम से ऐसी बघार बातें अभी से है कुछ उदास क़ासिद अभी से है बद-हवास क़ासिद सँभल सँभल कर समझ समझ कर करेगा क्या बे-क़रार बातें तुम्हारी तहरीर में है पहलू तुम्हारी तक़रीर में है जादू फँसे न किस तरह दिल हमारा जहाँ हों ये पेचदार बातें बुरी बला है ये 'दाग़'-ए-पुर-फ़न तुम इस को हरगिज़ न मुँह लगाना वगर्ना ढब पर लगा ही लेगा सुनीं अगर उस की चार बातें