मकाँ से ला-मकाँ तक आ गया हूँ ख़यालों में कहाँ तक आ गया हूँ गुज़र कर मैं ज़वाल-ए-ज़िंदगी से उरूज-ए-दास्ताँ तक आ गया हूँ तिरे होंटों की जुम्बिश कह रही है कि मैं तेरी ज़बाँ तक आ गया हूँ वहाँ तक है मिरी अब हुक्मरानी तिरे अंदर जहाँ तक आ गया हूँ गुज़रते वक़्त में कुछ दिन ठहर कर मैं उम्र-ए-जावेदाँ तक आ गया हूँ दर-ओ-दीवार तक वहशत-ज़दा हैं हक़ीक़त में गुमाँ तक आ गया हूँ मैं अपने आप से मिलने की ख़ातिर हुजूम-ए-दोस्ताँ तक आ गया हूँ पलटना अब कहाँ मुमकिन है 'आसिम' मैं ख़तरे के निशाँ तक आ गया हूँ