मकाँ छोड़ कर ला-मकाँ देखते हैं कहाँ वो हैं और हम कहाँ देखते हैं तअ'य्युन का हर आस्ताँ देखते हैं जहाँ तुम नहीं हम वहाँ देखते हैं उठा लेते हैं हम भी दो-चार तिनके जो बनते कोई आशियाँ देखते हैं क़फ़स में असीरों पे गिरती है बिजली चमन से जो उठते धुआँ देखते हैं नहीं देखते कुछ मगर अहल-ए-महशर मुझे या मिरी दास्ताँ देखते हैं हक़ीक़त में दैर-ओ-हरम एक हैं जब तुझे दोनों के दरमियाँ देखते हैं ये आहें हैं मेरी ये नाले हैं मेरे जिन्हें आसमाँ आसमाँ देखते हैं दर-ए-यार है फिर दर-ए-यार 'अफ़्क़र' जिनाँ को ब-हद्द-ए-जिनाँ देखते हैं