मक़ाम-ए-दिल बहुत ऊँचा बना है कमंद-ए-अक़्ल अब तक ना-रसा है फ़रोग़-ए-इश्क़ से बेताब जल्वे हरीम-ए-नाज़ में महशर बपा है मिज़ाज-ए-हुस्न में ये दर्द-मंदी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ क्या से क्या हुआ है ख़िरद है जुस्तुजू-ए-सोज़-ए-आतिश मोहब्बत आरज़ू-ए-बरमला है नवाज़िश उन की मुहताज-ए-मोहब्बत मिरी कम-माएगी का आसरा है चमन की निकहत-अफ़्शानी का बाइ'स ये मौज-ए-गुल है या मौज-ए-सबा है भला क्यूँ हो तुझे मेरी ज़रूरत कि तू सारे ज़माने का ख़ुदा है