कमाल-ए-हुस्न का जब भी ख़याल आया है मिसाल-ए-शे'र तिरा नाम दिल पे उतरा है मैं अपने आप को देखूँ तो किस तरह देखूँ कि मेरे गिर्द मिरी ज़ात ही का पर्दा है मैं फ़लसफ़ी न पयम्बर कि राह बतलाऊँ हर एक शख़्स मुझी से सवाल करता है ये सच है मैं भी तग़य्युर की ज़द से बच न सका सवाल ये है कि तू भी तो कितना बदला है तिरे ख़ुलूस की चादर सिमट गई शायद मिरा वजूद मुझे अजनबी सा लगता है अभी तो हालत-ए-दिल का सुधार है मुश्किल अभी तो तेरी जुदाई का ज़ख़्म ताज़ा है 'अज़ीज़' अपने तज़ादात ही मिटा डालो ये कौन पूछ रहा है ज़माना कैसा है