मकान देता कहाँ था अमान मिट्टी का मकीन छोड़ गए ये जहान मिट्टी का ना जाने कौनसी बारिश बहा के ले जाए खड़ा हूँ सर पे लिए साएबाँ मिट्टी का ज़मीं को तंग समझते हो किस लिए इतना ये शुक्र है कि नहीं आसमान मिट्टी का तुम्हारे लम्स की ख़ुशबू है आज तक इस में महक रहा है अभी फूल-दान मिट्टी का बिखर रहा हूँ हवा में कुछ इस तरह अब तो बदन पे होने लगा है गुमान मिट्टी का मैं डर रहा हूँ कि मायूस ही न हो 'अज़हर' कि ले रहा है कोई इम्तिहान मिट्टी का