मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं By Ghazal << यकसाँ कभी किसी की न गुज़र... एक इशारे में बदल जाता है ... >> मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं गोया कि तमाम हो गया मैं एहसास की आग से गुज़र कर कुछ और भी ख़ाम हो गया मैं दीवार-ए-हवा पे लिख गया वो यूँ नक़्श-ए-दवाम हो गया मैं पत्थर के पाँव धो रहा था पानी का पयाम हो गया मैं उड़ता हुआ अक्स देखते ही फैला हुआ दाम हो गया मैं Share on: