मक्र-ओ-अय्यारी का दामन छोड़ दे अक़्ल से ग़ैरत का रिश्ता जोड़ दे ज़र्फ़ है तो मोड़ ले कुछ पाँव और छोटी चादर की शिकायत छोड़ दे जग-हँसाई हो न जाए फिर कहीं बे-सबब औरों पे हँसना छोड़ दे ज़ुल्म को बर्दाश्त करना जुर्म है ज़ालिमाना फ़े'ल का दम तोड़ दे दिल के दोनों हर्फ़ होते हैं जुदा हो सके तो टूटे दिल को जोड़ दे ज़ेहन को शफ़्फ़ाफ़ दिल को पाक रख आइनों से तू उलझना छोड़ दे मंज़िल-ए-मक़्सूद पाने के लिए ज़िंदगी को इक नया सा मोड़ दे