नसीहत से मेरी ये सौ कोस भागे तिलंगों की हक़ में जैसे भूतिया है मैं बैठूँ ज़मीं पर ये बैठे समाँ पर कुजा तख्त-ए-शाही कुजा बोरिया है करें जा-ब-जा लोग पर का कबूतर हर इक बात का मच रहा तूतिया है ज़माने का ये हाल और दिल का ये हाल कहो किस तरह रहती शरम और हया है भँवर बीच ग़म के मैं डालों और उछलूँ ये कहता है मुझ से कि तू मरजिया है मैं सौ सौ दफ़ा तेरा फाड़ा गरेबाँ बता तू ने किस से वास्ते फिर सिया है तू है मौत का ढेर मत बोल मुझ से अमर हूँ मैं ने आब आब-ए-हैवाँ पिया है मेरे सानी नई है कोई अब जहाँ में फ़लक के कंगूरों को मैं ने छिया है ख़ुदा हूँ सदा आशिक़ी पर मैं उसी की वो जो क़ैस सहरा में एक हो गया है ख़ुदा की तरफ़ जिन ने दिल को लगाया हुआ फ़ज़ उस के से वो अंबिया है मिरे जी में आवेगी सो ही करूँगा मैं मुख़्तार हूँ मेरा करम ख़ुर्दा है सुनें दल के मुँह से मैं जब ऐसी बातें ख़ुदा शाहिद है मैं ने रो रो दिया है फिर आख़िर हो लाचार में हार बैठा ये लड़ने के तईं मीर ख़ाँ ठोकिया है कहूँ क्या क्या यारो मैं दिल के तमाशे ये तो स्वाँग लाने को बहरूपिया है न बिक आगे अब 'नयन' ख़ामोश हो रा ये दिल है तेरा यार लँगोटिया है