मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे मैं और तो क्या कोसूँ पर तुम से ख़ुदा समझे समझाने की जो बातें कीं मैं ने दिला तुझ से ऐ अक़्ल की दुश्मन सो तेरी तो बला समझे दिल में मिरे चुटकी ली ऐसी है कि दर्द उट्ठा माक़ूल चे ख़ुश ऐ वाह आप इस को अदा समझे ऐ बू-लहब-ए-नख़वत सीधे हैं अगर सच-मुच तो आज से साहब को हम अपना चचा समझे साहब ने न की यारी वहशत से परी से तो ऐ शैख़-ए-जुनूँ तुम को हम ख़्वाजा-सरा समझे हँगामा-ए-महशर भी गर सामने आया तो उस को भी तमाशाई एक साँग नया समझे वो दश्त-ए-मोहब्बत में रक्खे क़दम ऐ 'इंशा' सर अपने को आगे ही जो तन से जुदा समझे