माल कुछ शय है न कुछ साहिब-ए-सामाँ होना बाइस-ए-फ़ख़्र है इंसान को इंसाँ होना शो'ला सर धुनता है किस सोख़्ता-जाँ के ग़म में सोग में किस के है ऐ शम्अ' ये गिर्यां होना नाला-कश ग़म से न हो फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में बुलबुल ख़ास आबादी के आसार हैं वीराँ होना सूरत-ए-ज़ख्म-ए-जिगर हँसते ही रोता हूँ लहू याँ मयस्सर नहीं दम भर को भी शादाँ होना दस्त-ए-वहशत की ख़ता है न जुनूँ की तक़्सीर अपनी तक़दीर में था चाक-गरेबाँ होना हाँ ख़बर-दार कि अंजाम-ए-मसर्रत है मलाल सूरत-ए-गुल न ख़ुशी से कभी ख़ंदाँ होना शामिल-ए-हाल अगर फ़ज़्ल-ओ-करम हो उस का सहल है मुश्किल-ए-दुश्वार का आसाँ होना ख़ाक हो जाए तो हो आँख में जाए इंसाँ काम आया मिरा यूँ गर्द-ए-बयाबाँ होना बात में बात न हो तो वो सुख़न क्या 'रौशन' दावा आसान है मुश्किल है सुख़न-दाँ होना