माल-ओ-दौलत न लाल-ओ-गुहर चाहिए मुद्दआ के लिए चश्म-ए-तर चाहिए मेरे शीशे में मय हो न हो ग़म नहीं मुझ पे साक़ी तिरी बस नज़र चाहिए इस जहाँ में रहे मुझ को जीने का हक़ बस इनायत तिरी इस क़दर चाहिए हर तरफ़ राहज़न हैं मिरी राह में मुझ को तुझ सा कोई राहबर चाहिए जिस तसव्वुर में 'शाहिद' रहे आज तक वो तसव्वुर उन्हें उम्र भर चाहिए