ख़ुशी की राह में ग़म की रिफ़ाक़त लेनी पड़ती है तलाश-ए-गुल में ख़ारों से अदावत लेनी पड़ती है गले का हार बनना ख़ुश-नसीबी है मगर लोगो गुलों से पूछ लो क्या क्या अज़िय्यत लेनी पड़ती है नहीं अब रास आती है फ़ज़ा गुलशन की बुलबुल को यहाँ लब खोलने की भी इजाज़त लेनी पड़ती है जहाँ हर सू लुटेरों रहज़नों का ही बसेरा है वहाँ बैठे-बिठाए भी मुसीबत लेनी पड़ती है ज़माने की तरक़्क़ी का यही अंजाम है शायद मियाँ 'शाहिद' को बेटों से नसीहत लेनी पड़ती है