मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं ख़याल-ए-दोस्त से अच्छा कोई ख़याल नहीं जिसे ज़वाल न हो वो कोई कमाल नहीं कमाल-ए-ग़म को हमारे मगर ज़वाल नहीं जफ़ाएँ कर के जो वो सुस्त सुस्त बैठे हैं उन्हें मलाल ये है मुझ को कुछ मलाल नहीं ये क्या नहीं निगह-ए-फ़ित्ना-साज़ तेरी कमी हमारे जज़्बा-ए-ग़म में अब इश्तिआ'ल नहीं कहो ग़मों से कि बे-फ़िक्र अब दिलों में रहें ख़ुशी का आज की दुनिया में एहतिमाल नहीं ये और बात तरस ही न हो किसी दिल में छुपा हुआ तो ज़माने से मेरा हाल नहीं गिरी जो बर्क़ तो अपना बना रहा है मुझे ये क्या है 'अश्क' अगर बाग़बाँ की चाल नहीं