माना कि मैं इक नग़्मा-ए-बे-सौत-ओ-सदा हूँ भटके हुए लोगों के लिए बाँग-ए-दरा हूँ तस्वीर बना लूँ तिरी जिस रंग में चाहूँ बंदा हूँ मगर अपने तख़य्युल का ख़ुदा हूँ फ़ितरत है मिरी मिस्ल-ए-मिज़ाज-ए-गुल-ए-ख़ंदाँ हँसते हुए हर मोड़ पे लोगों से मिला हूँ ख़ामोश समुंदर हूँ कि ठहरा हुआ तूफ़ाँ इस सोच में सदियों से मैं साहिल पे खड़ा हूँ आज अपने इसी शहर में ये हाल है लोगो इक फूल की मानिंद मैं काँटों में घिरा हूँ