क़ैद जब हम पे लगी वुसअ'त-ए-दामाँ के लिए कितनी कसरत से खिले फूल गुलिस्ताँ के लिए वो मुनाजातें कहाँ हैं तिरे एहसाँ के लिए कसरत-ए-शौक़ नहीं आलम-ए-हिरमाँ के लिए जैसे हर हुस्न से मुम्ताज़ है वो हुस्न तमाम हम हैं ए'ज़ाज़ के क़ाबिल नहीं जानाँ के लिए क़ारईन-ए-निगह-ए-नाज़ ही समझे वो ख़त सुर्ख़ डोरों में जो तहरीर है अरमाँ के लिए रिंद लाए मय-ओ-साग़र की हसीं तश्बीहें इस्तिआ'रा निगह-ए-हुस्न थी पैकाँ के लिए ख़ौफ़ क्या हो रह-ए-तारीक-ए-बयाबाँ का हमें कम नहीं किर्मक-ए-शब-ताब चराग़ाँ के लिए अश्क-ए-ग़म रोके रहें फ़ाक़ा-गुज़ारों से कहो पानी गुलख़न से चला नूह के तूफ़ाँ के लिए की न जब अहल-ए-सियासत ने सितम से तौबा हम उतारे गए इस क़ौम-ए-बद-उनवाँ के लिए दर जहान-ए-गुल-ए-बे-ख़ार नचीदस्त कसे ग़म न कर 'मानी'-ए-नश्तर-कश-ए-दौराँ के लिए