मानिंद-ए-शम्अ'-ए-बज़्म पिघलने के वास्ते पैदा हुआ हूँ इश्क़ में जलने के वास्ते वो नाज़ कर रहे हैं शब-ए-वस्ल और इधर अरमाँ तड़प रहे हैं निकलने के वास्ते बुलबुल से कह दो शेवा-ए-फ़र्याद छोड़ दे आएँगे बाग़ में वो टहलने के वास्ते रोने को हिज्र-ए-यार में आँखें अता हुईं बख़्शा गया है दिल भी मचलने के वास्ते सच पूछिए तो इश्क़ में ख़ुद को बदल लिया हम ने ख़याल-ए-यार बदलने के वास्ते 'हाजिर' क़रार दिल को न आया किसी तरह क्या क्या किया न इस के बहलने के वास्ते