मानिए बात मिरी साज़ बदलते रहिए कभी लहजा कभी आवाज़ बदलते रहिए एक ही तौर जो अपनाया तो फँस जाएँगे जैसे हालात हों अंदाज़ बदलते रहिए शिकवा-ए-शूमी-ए-तक़दीर तो नादानी है आप तदबीर से परवाज़ बदलते रहिए है मुनासिब यही इस दुनिया में जीने के लिए दम घुटे जिस से वो दम-साज़ बदलते रहिए आ गए आप सनम-ख़ाने में तो याद रहे अपने सज्दों के भी अंदाज़ बदलते रहिए चाहते हैं कि हो इज़्ज़त का तहफ़्फ़ुज़ हर दम दोस्त बदले हैं तो फिर राज़ बदलते रहिए अस्र-ए-हाज़िर का तक़ाज़ा तो यही है 'मोनिस' राज़ की बात है हम-राज़ बदलते रहिए