मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है दिल फिर किसी सफ़र का सामान कर रहा है या रत-जगों में शामिल कुछ ख़्वाब हो गए हैं चेहरा किसी उफ़ुक़ का या फिर उभर रहा है या यूँही मेरी आँखें हैरान हो गई हैं या मेरे सामने से फिर तू गुज़र रहा है दरिया के पास देखो कब से खड़ा हुआ है ये कौन तिश्ना-लब है पानी से डर रहा है है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है